ऋषि संदीपनी एक प्रखर विद्वान थे जो काशी में रहा करते थे। काशी में उनकी गिनती वेद के ज्ञाता, प्रकांड विद्वान और प्रमुख गुरुओं में होती थीं। उनका आश्रम शास्त्र, शस्त्र, कर्म और सांसारिक शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र था। गुरु सांदीपनि भगवान शिव के अनन्य भक्त थे और महाकाल को इष्ट के रूप में पूजते थे।

भगवान महाकाल से निकटता और नित्य दर्शन के चलते उन्होंने अपना आश्रम काशी से उज्जैन स्थानांतरित किया था। उनके आश्रम के कारण द्वापर युग में उज्जैन शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र बना। कंस वध के पश्चात जब वासुदेव जी ने भगवान कृष्ण और बलराम के शिक्षस्थली के रूप में उज्जैन का चयन किया था और उन्हें ऋषि संदीपनी के आश्रम में अध्ययन करने के लिए भेजा।

ऋषि संदीपनी के आश्रम में भगवान श्री कृष्णा और उनके भाई बलराम के अलावा सुदामा नमक एक अन्य छात्र भी था। सुदामा एक निर्धन ब्राह्मण पुत्र था वह भी अपने अध्ययन हेतु सांदीपनि आश्रम में ही रहता था। वहीं पर भगवान श्री कृष्ण की मित्रता सुदामा से हो गई थी और भगवान कृष्ण और सुदामा की मित्रता हमें उदाहरण के तौर पर लेना चाहिए। उनका एक दूसरे के प्रति समर्पण त्याग और निस्वार्थ प्रेम अतुलनीय था।आज तक मित्रता की उच्चतम परिभाषा को परिभाषित करती है।

भगवान कृष्ण और सुदामा की मित्रता

भगवान कृष्ण और सुदामा की मित्रता

भगवान राजकुल के जन्मे थे और सुदामा एक दरिद्र ब्राह्मण के घर। एक निर्धन और एक धनवान की मित्रता का सबसे बड़ा उदाहरण भगवान कृष्ण की सुदामा से मित्रता है। आज के युग में जहां धन लालच और स्वार्थ ही सबसे बड़े कर्म बने हुए हैं भगवान कृष्ण और सुदामा की मित्रता हमें उदाहरण के तौर पर लेना चाहिए। उनका एक दूसरे के प्रति समर्पण त्याग और निस्वार्थ प्रेम अतुलनीय था।

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