
सनातन धर्म में हम प्रकृति के हर घटक को देवतुल्य मानते हुए पूजते है। प्रकृति से हमारा प्रेम यूं ही नहीं है, हमने पशु, पक्षी, वृक्ष और पत्थरों को भी हमने देवता माना है। प्रकृति से मिले हर एक घटक को हमने अपने जीवन में एक उच्च स्थान दिया है। वैसे तो हम कई वृक्षों को पूजते हैं परंतु तुलसी का स्थान सब उच्चतम है।
तुलसी जिसे हम वृंदा के नाम से भी जाना जाता है भगवान श्री कृष्ण को प्राणतुल्य प्रिय है। तुलसी पत्र के बिना भगवान के सारे भोग अधूरे है। मंदिरों और घरों में विराजित श्री हरि विष्णु के सभी अवतारों और उनके विद्रोह को बिना तुलसी के भोग वर्जित है जो भगवान को भी अस्वीकार्य है।
तुलसी हर आंगन की शोभा है हर आंगन, हर घर, हर परिवार तुलसी के बिना अधूरा है यह हमारे जीवन में एक अनिवार्य वस्तु की तरह घुली मिली है। हमारे साहित्य और बोलचाल में भी तुलसी का बड़ा महत्व है “मैं तुलसी तेरे आंगन की” एक मुहावरे के रूप में प्रसिद्ध है और इसका उपयोग साहित्य, सिनेमा और हमारी दिनचर्या में कई बार हुआ है।
जब हनुमान जी माता सीता का पता लगाने के लिए लंका गए थे तब भी रावण के छोटे भाई विभीषण के आंगन में तुलसी होने का विवरण है। विभीषण एक एक सच्चरित्र ब्राह्मण थे और भगवान के भक्त भी थे। सनातन में हमने तुलसी को हमारे उत्सव और त्यौहार में भी सम्मिलित किया हुआ है। प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास में होने वाला तुलसी विवाह इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
वैज्ञानिक कारण – वास्तव में तुलसी अत्यधिक प्राणवायु या ऑक्सिजन देने वाला और औषधीय महत्व रखने वाला पौधा है। इसका उपयोग सर्दी और जुखाम के इलाज़ के लिए किया जाता है। तुलसी की माला हर श्री कृष्ण भक्ति के गले की शोभा बनती है बिना तुलसी के राधा कृष्ण का नाम अधूरा है। तुलसी की माला जिसका उपयोग जप करने के लिए भी होता है इसी के साथ तुलसी की लकड़ी का उपयोग तिलक लगाने में भी किया जाता है। इन्हीं कर्म के चलते हिंदू धर्म में इसे आंगन और बगीचे में लगाया जाता है।
सनातन धर्म संस्कृति में तुलसी एक वस्तु या पौधे से बढ़कर बहुत कुछ है इन सब बातें को जानने के लिए हमारे ब्लॉग से जुड़े रहे। एक अलग ब्लॉक में हम तुलसी और श्री कृष्ण के संबंध में विस्तार से लिखेंगे। हमसे जुड़ने के लिए धन्यवाद
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