
उज्जैन में राजा भृतहरि गुफ़ा शिप्रा तट पर गढ़कालिका मंदिर के पास स्थित है। यह नाथ संप्रदाय का एक बड़ा केंद्र है यहां राजा भृतहरि और उनके भांजे श्री गोपीनाथ की गुफाएं है जहां उन्होंने तप किया था।
राजा भृतहरि सम्राट विक्रमादित्य के बड़े भाई थे और उज्जैन में उन्हीं का शासन था परंतु एक ऐसी घटना घटी जिस के पश्चात उन्होंने वैराग्य ले लिया और उन्होंने अपना राजपाट सम्राट विक्रमादित्य को सौंप दिया।
राजा भृतहरि ने शिप्रा नदी के तट पर एक छोटी पहाड़ी पर 12 वर्षों तक कठोर तप किया। यह तप देखकर देवराज इंद्र मैं उनकी तपस्या भंग करने हेतु गुफा को धान का प्रयास किया जिसे तकलीफ राजा भृतहरि ने अपने एक हाथ से रोक दिया। उनके हाथ से बना निशान आज भी गुफा में स्थित है लोग उसे छूट भी हैं।
कालीकाजी के मंदिर जिसे गढ़कालिका मंदिर के नाम से जाना जाता है के पास में बनी हुई है।
राजा भृतहरि गुफ़ा

भृतहरि एक प्रकांड पंडित थे कहा जाता है की राजा भृतहरि को अमरता का वरदान है। अपनी पत्नी के गलत राह पर जाने के चलते उन्होंने अपना संपूर्ण साम्राज्य राजा विक्रमादित्य को सौप कर सन्यास ग्रहण कर लिया।
राजा भृतहरि ने जिस गुफ़ा में तपस्या की थी उसी गुफ़ा को भृतहरि गुफ़ा के नाम से जाना जाता है इस गुफा के अंदर से चार धाम का मार्ग धरती के अंदर -अंदर होकर जाता है किंतु इस समय यह मार्ग बंद है।
यहां कुल दो गुफाएं है साथ ही राजा भृतहरि की समाधि भी यहां पर बनी हुई है।
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