
इस वर्ष 23 नवंबर शनिवार को भैरवाष्टमी है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार अगहन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन मध्यरात्रि में भैरव का जन्म हुआ था इसलिए इसे भैरव जयंती भी कहते है। महाकाल की नगरी में भैरव पूजा का विशेष मान्यता है।
स्कंद पुराण के अवंति खंड के अनुसार उज्जैन में अष्ट भैरव का उल्लेख मिलता है। भैरव अष्टमी के अवसर पर उज्जैन में अष्ट भैरव की यात्रा का विशेष महत्व माना गया है। इस दिन अष्ट भैरव की यात्रा तथा दर्शन पूजन करने से मनवांछित फल मिलता है और समस्त प्रकार के भाई से मुक्ति मिलती है।
भैरव तंत्र का कथन है कि जो भय से मुक्ति दिलाए वह भैरव है।
क्या है भैरव का मूल स्थान :- श्मशान तथा उसके आसपास का एकांत जंगल ही भैरव का मूल स्थान है। संपूर्ण भारत में मात्र उज्जैन ही एक ऐसा स्थल है, जहां ओखलेश्वर तथा चक्रतीर्थ श्मशान हैं। अष्ट भैरव (अष्ट महाभैरव) इन्हीं स्थानों पर विराजमान है।
स्कंद पुराण में लिखे अनुसार उज्जैन में अष्ट भैरव निम्न स्थानों पर विराजमान है। जानिए कहां-कहां है उनका स्थान :-
1. भैरवगढ़ में श्री काल भैरव – विश्व प्रसिद्ध कालभैरव मंदिर जिन्हें भगवान महाकाल के सेनापति के रूप में भी जाना जाता है। यहां भगवान को मदिरा का भोग लगाया जाता है।

2. चक्र तीर्थ शमशान में स्थित बम बटुक भैरव – उज्जैन के प्रमुख शमशान को तीर्थ की संज्ञा दी गई है माना जाता है यहां पर दाह संस्कार के बाद जीवन मृत्यु चक्र से मुक्ति मिल जाती है इसीलिए इस चक्र तीर्थ भी कहते हैं। बम बटुक भैरव इसी शमशान में विराजित देवता है।
3. रामघाट के समीप स्थित आनंद भैरव – श्री आनंद भैरव मंदिर शिप्रा नदी की छोटी रपट (पुल) के बाईं ओर प्रसिद्ध रामघाट मार्ग पर ही स्थित है। यह मंदिर स्थापत्य कला की दृष्टि से बाहर से तो अति प्राचीन नहीं दिखता है, किन्तु देव-प्रतिमा के दर्शन करने तथा प्रतिमा के दाएं और बाएं विद्यमान मूर्तियों एवं स्तंभों की अंशत: दृष्टव्य आकृतियों के आधार पर नि:संदिग्ध रूप से अति प्राचीन लगता है।

4. दंड पाणी भैरव – यह मंदिर शिप्रा तट के पास स्थित कालिदास उद्यान के मध्य भाग में स्थित है। करीब 450 वर्गफीट के चारों ओर 3 फीट ऊंची दीवारों तथा 12 फीट ऊंची छत तक चौतरफा लोहे के सरियों से अभिरक्षित कक्ष के मध्य स्थित केवल 20 वर्गफीट के गर्भगृह में भैरवजी की सिंदूरचर्चित मुण्डाकृति मूर्ति समतल भूमि पर पिण्डवत विराजित है। यह मंदिर भी मां क्षिप्रा नदी के किनारे पर स्थित है।

5. ओखलेश्वर शमशान पर स्थित विक्रांत भैरव – कालभैरव के निकट ओखलेश्वर शमशान पर स्थित विक्रांत भैरव क्षिप्रा नदी के किनारे विराजमान हैं। ओखलेश्वर शमशान एक जागृत शमशान माना जाता है और वहां विराजने वाले श्री विक्रांत भैरव तंत्र के देवता के रूप में जाने जाते हैं। यहां प्रतिदिन तांत्रिक क्रियाएं होती रहती है।

6. काला गौरा – मुख्य मार्ग ढाबा रोड़ पर गेबी हनुमान मंदिर की गली के सामने से आपको भैरवजी के दो मंदिर दिखाई देंगे। इनमें दाईं ओर स्थित मंदिर में श्री काला भैरव की मूर्ति सड़क मार्ग से करीब 2 फीट ऊंचे गर्भगृह में टाइल्स जड़े फर्श पर स्थापित है। गर्भगृह में यह मूर्त्ति बाई ओर हटकर स्थापित है जबकि दाई ओर स्थान खाली पड़ा है। बाई ओर गोरा भैरव की प्रतिमा है। छोटा-सा यह मंदिर भी सड़क से करीब ड़ेढ़ फीट ऊंचा है। यह मूर्ति भी जागृत है।

7. चक्रपाणि भैरव, श्री बटुक भैरव – स्कन्द महापुराण में महादेव ने देवी पार्वती को अवन्ती क्षेत्र के अष्ट भैरवों के जो नाम बताए, उनमें पांचवें क्रम पर श्री बटुक भैरव का नाम बताया गया है। मंदिर शिप्रा नदी के तट पर स्थित उज्जैन शहर के प्रमुख श्मशान चक्रतीर्थ के ठीक पहले बाईं ओर ऊपर ही बना है जिसके द्वार से होकर दाईं ओर जाने पर कुछ सीढ़ियां उतरकर पूर्वाभिमुखी बटुक भैरव के मुण्ड स्वरूप में बाल छवि के दर्शन होते हैं।

8. श्री महाभैरव आताल-पाताल भैरव – स्कन्द महापुराण के अवन्ती-माहात्म्य-खण्ड में यह मंदिर सिंहपुरी में बताया है। इनका यह नाम इस माने में अर्थसिद्ध है क्योंकि इसकी मूल आकृति का आधा निचला भाग भूमिगत तथा ऊपरी आधा भाग ऊपर था। देवमूर्ति पिण्डात्मक एवं सिंदूरचर्चित है तथा महाभैरवजी का केवल मुण्ड ही दिखाई देता है। यह मंदिर अति प्राचीन होने से भगवान महाभैरव द्वारा भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण की जाती हैं।

अष्ट भैरव-साधना से पीड़ामुक्ति
शनि, राहु, केतु तथा मंगल ग्रह से जो जातक पीड़ित हैं, उन्हें भैरव की साधना अवश्य ही करनी चाहिए। अगर जन्मपत्रिका में मारकेश ग्रहों के रूप में यदि उक्त चारों ग्रहों में से किसी एक का भी प्रभाव दिखाई देता हो तो भैरव जी का पंचोपचार पूजन जरूर करवाना चाहिए। भैरव के जाप, पठनात्मक एवं हवनात्मक अनुष्ठान मृत्युतुल्य कष्ट को समाप्त कर देते हैं।