सनातन में बरगद के पेड़ का महत्व

सनातन के अनुसार बरगद के पेड़ का महत्व बहुत बड़ा है। ऐसा मन जाता है के बरगद के वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का वास होता है। वेदों के अनुसार बरगद के पेड़ की जड़ों में ब्रह्मा, तने में विष्णु और शाखाओं एवं लताओं में शिव का निवास होता है। बरगद के पेड़ के नीचे घी का दीपक जलाने से त्रिदेव प्रसन्न हो जाते हैं।

बरगद के पेड़ को अक्षय वृक्ष भी कहा जाता है क्योंकि यह बहुत लंबे समय या वर्षो तक जीवित रहता है और वातावरण में शुद्ध प्राणवायु छोड़ता रहता है।

सनातन धर्म हमें प्रकृति से प्रेम करना सिखाता है और सनातन धर्म में हम हर जगह भगवान का वास देखते हैं। वृक्षों में भी भगवान का वास मानते हुए हम उनकी पूजा करते हैं और नित्य जीवन में भी हमने वृक्षों को और प्रकृति को सम्मिलित किया हुआ है। पशु पक्षी के साथ-साथ संसार में पाए जाने वाले हर कण में हम भगवान को खोजते हैं और उन्हें भगवान का रूप मानते हुए किसी न किसी रूप में पूजते हैं।

बरगद के पेड़ का महत्व

कई व्रत और अनुष्ठान बरगद के वृक्ष के बिना अधूरा है जैसे वट सावित्री अमावस्या। तुम्हारे पुराने ग्रंथ और साहित्य भी वट वृक्ष को मोक्ष दायक मानते हुए इसके नीचे तप करने की महत्वता को दर्शाता है। भगवान बुद्ध को भी इसी तरह एक वटवृक्ष के नीचे मोक्ष या ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। कई ऋषि मुनि और साधक वट वृक्ष के नीचे तप करके ज्ञानी बनें।

जब मकान का और सुविधाओं का अभाव हुआ करता था तब भी जीवन में हमने प्रकृति को सम्मिलित और समाहित किया हुआ था। उदाहरण के तौर पर देखें हर मंदिर में एक बरगद का पेड़ जरूर होता है और उसकी छाया में हम कुछ देर बैठकर मन को शांत करते हैं। इसी प्रकार हर विद्यालय, आश्रम, धर्मशाला, पार्क, मोहल्ला और रास्तों पर हमें वट वृक्ष मिलते हैं जो सदियों पुराने है। यह वृक्ष हमें बताते हैं की इन्हीं की छाया का हमने कई तरह से उपयोग किया है।

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