समुद्र मंथन हिंदू धर्म के पौराणिक कथा के अनुसार देवताओं (देवगण) और दानवों (दानवों) के द्वारा किया गया था। यह घटना भगवान विष्णु द्वारा बताए गए एक दिव्य उपाय के अनुसार हुई थी, और इसका उद्देश्य अमृत (अमरता का अमृतपान) प्राप्त करना था।

समुद्र मंथन की कथा:

  • जब देवता और दानवों के बीच संघर्ष बढ़ गया और वे अमृत (अमरता देने वाला अमृत) प्राप्त करने के लिए संघर्ष कर रहे थे, तो भगवान विष्णु ने उन्हें समुद्र मंथन करने का सुझाव दिया।
  • समुद्र मंथन के लिए देवताओं और दानवों ने मंदर पर्वत को मंथन के डंडे के रूप में और वासुकि नाग को रस्सी के रूप में इस्तेमाल किया। दोनों पक्षों ने मिलकर इस मंथन में भाग लिया।
  • समुद्र मंथन से अमृत के साथ-साथ अनेक और दिव्य रत्न और पदार्थ भी निकले, जैसे कि चंद्रमा, लक्ष्मी, ऊर्ध्वलोक, रत्न आदि।
  • अंत में, अमृत प्राप्त हुआ, जिससे देवताओं को अमरता प्राप्त हुई, और दानवों को इसके सेवन से वंचित कर दिया गया।

प्रमुख घटनाएँ:

  • समुद्र मंथन के दौरान, मंथन से एक खतरनाक विष भी निकला, जिसे कालकूट विष कहा जाता है। इस विष को भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण किया था, जिससे उनका गला नीला पड़ गया और वे नीलकंठ के नाम से प्रसिद्ध हुए।
  • इसके बाद, लक्ष्मी देवी, चंद्रमा, ऐरावत हाथी, उदधि (समुद्र), अश्विनी कुमार और कई अन्य दिव्य रत्न भी समुद्र मंथन से उत्पन्न हुए।

समुद्र मंथन की कथा को हिंदू धर्म की पौराणिक कथा और धार्मिक प्रतीक के रूप में देखा जाता है, जिसमें भौतिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता को दर्शाया गया है।