
समुद्र मंथन से निकला कालकूट विष था, जिसे भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण किया था। यह विष इतना घातक और शक्तिशाली था कि यदि वह पूरी तरह से पृथ्वी पर फैल जाता, तो समस्त सृष्टि का नाश हो सकता था।
विष पीने की कथा:
- जब समुद्र मंथन के दौरान कालकूट विष उत्पन्न हुआ, तो सभी देवता और दानव उस विष को देखकर भयभीत हो गए। इस विष को नष्ट करने के लिए कोई उपाय नहीं था।
- तब भगवान विष्णु ने भगवान शिव से मदद की अपील की। भगवान शिव ने अपने भक्तों की रक्षा और संसार की सुरक्षा के लिए इस विष को पीने का निश्चय किया।
- भगवान शिव ने विष को अपनी जटाओं (बालों) में धारण किया और उसे अपने गले में रखा। विष पीने से उनका गला नीला पड़ गया, जिससे उन्हें नीलकंठ (नीले गले वाले) के नाम से जाना गया।
परिणाम:
- भगवान शिव के गले में विष का प्रभाव पड़ा, लेकिन भगवान शिव के कृपा से विष ने उनका कुछ नहीं बिगाड़ा और उन्होंने उसे अपने शरीर में समाहित कर लिया।
- इस घटना ने यह सिद्ध कर दिया कि भगवान शिव के पास अपार शक्ति और तंत्र है, जो उन्हें किसी भी प्रकार के विष या संकट से बचाने में सक्षम है।
इस प्रकार, समुद्र मंथन से निकला विष भगवान शिव ने अपनी शक्ति से शांत किया और उसे नीलकंठ के रूप में अपनी पहचान दी।