सनातन धर्म में उज्जैन का स्थान उच्च कोटि का है। यहां ज्योतिर्लिंग, शक्तिपीठ, महा शक्तिपीठ, अष्ट भैरव, 64 योगिनी, 84 महादेव, सप्त सागर और भी कई प्रसिद्ध एवं प्राचीन मंदिर स्थित है। उसके अलावा उज्जैन में कुंभ मेला लगता है जो की उज्जैन के उज्जैन के महत्व को और भी बढ़ा देते हैं। उज्जैन में बहने वाली मां शिप्रा का भी सनातन धर्म में एक विशेष महत्व है ऐसा माना जाता है। माता शिप्रा भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है।

अध्यात्म और साहित्य में भी उज्जैन का उल्लेख कई जगह मिलता है।

महाकवि कालिदास की सारी रचना उज्जैन को लेकर ही है। भगवान वेदव्यास रचित महाभारत में भी अवंतिका के रूप में उज्जैन का और उज्जैन के राजा का वर्णन है। भगवान श्री कृष्ण की विद्यास्थली उज्जैन में ही स्थित श्री सांदीपनि आश्रम है। उज्जैन से 15 किलोमीटर दूर नारायण गांव में श्री कृष्णा बलराम सुदामा का मंदिर उसे पल का साक्षी है जब भगवान श्री कृष्णा अपने भाई बलराम और सुदामा के साथ जंगल में लड़कियां तोड़ने गए थे।

ज्योतिष एवं ज्यामिति में भी उज्जैन का योगदान काम नहीं है। विक्रमादित्य के समय क्षपणक और वराहमिहिर ज्योतिष और ज्यामिति के प्रसिद्ध विद्वान थे जिनकी रचना आज भी जनमानस के पथ को प्रदर्शित करती है।

प्राचीन समय से ही उज्जैन काल गणना का एक प्रमुख केंद्र है। कर्क रेखा उज्जैन से होकर ही निकलती है इसका भी काल गणना में बड़ा महत्व है। उज्जैन के कई मंदिर काल गणना के बड़े केंद्र हैं महाकालेश्वर मंदिर में विराजित भगवान श्री शिव को भी महाकाल के रूप में ही जाना जाता है। महाकाल में हम भगवान को समय के रूप में ही पूजते है। मंगलनाथ मंदिर को मंगल ग्रह का जन्म स्थान माना जाता है साथ ही अगर आपकी कुंडली में मंगल दोष हो तो मंगलनाथ मंदिर में उसकी पूजा की जाती है जिसका भी ज्योतिष से ही संबंध है।

अध्यात्म और साहित्य

जयपुर के राजा जयसिंह ने उज्जैन में कालगणना के लिए ही जंतर मंतर की स्थापना करवाई थी और उज्जैन के जंतर मंतर के यंत्रों की क्षमता किसी से छुपी नहीं है। यह सारे यंत्र सटीक जानकारी देते हैं।

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