महाकालेश्वर मंदिर में प्रातः काल 4:00 बजे होने वाली आरती को भस्म आरती कहा जाता है। इस आरती में दिगंबर स्वरूप भगवान श्री महाकाल को भस्म अर्पित की जाती है। यह आरती एक अद्वितीय अनुभव है जो विश्व में कहीं और देखा नहीं जाता है। भस्म आरती के बारे में कई सारी कहानियां और किंवदंतियां प्रचलित है।

जितने मुख उतनी बातें यह कहावत चरितार्थ होती है जब बात महाकालेश्वर के भस्म की आती है हर कोई अपना एक नया संस्करण प्रस्तुत करता है। भगवान श्री महाकाल को चढ़ने वाली भस्म कहां से लाई जाती है कुछ लोग कहते हैं के शमशान में जलने वाली चिताओं की भस्म है परंतु मंदिर के पुजारी कहते हैं यह गाय की गोबर से बनाए गए उपलों से तैयार की गई भस्म है जो सिर्फ महाकाल को अर्पित करने के लिए ही तैयार की जाती है।

महाकाल मंदिर मैं तीन तल है, भूतल पर स्थित श्री ओंकारेश्वर मंदिर के पीछे धूनी का कमरा है, जहां अखंड धूनी जल रही है। उसे धुनी में बनने वाली भस्म को ही सूती कपड़े से छान कर भगवान श्री महाकालेश्वर को अर्पण करने के लिए भस्म तैयार की जाती है।

श्री महाकालेश्वर मंदिर महानिर्वाणी अखाड़े की परंपरा का निर्वहन करता है। इसी अखाड़े से संबंधित साधु गण इस भस्म को तैयार करते हैं और भगवान श्री महाकाल को अर्पित करते हैं। हमारे देश में आज भी कुछ मुख्य परंपरा अखाड़ों के द्वारा प्रबंधन की जाती है।

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