वैसे तो उज्जैन कई कारणों से प्रसिद्ध है, जैसे कुंभ मेला, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, शक्तिपीठ माता हरसिद्धि, काल भैरव,  मंगलनाथ, सांदीपनि आश्रम इत्यादि। ऐसा ही एक महत्वपूर्ण और रोमांचकारी अनुभव है, श्री महाकालेश्वर की सवारी।

भगवान महाकाल की सवारियां पूरे वर्ष में कई बार निकलती है परंतु कार्तिक माह की एकादशी (ग्यारस) को निकलने वाली सवारी कुछ खास होती है। इस दिन भगवान महाकाल अपने मंदिर से निकाल कर श्री गोपाल मंदिर जाते हैं और भगवान श्री कृष्ण से भेंट करते हैं।

वामन अवतार के समय भगवान ने राजा बलि को जो वरदान दिया था उसके अनुसार भगवान 4 महीने के लिए (जिसे हम चौमासा भी कहते हैं) राजा बली के घर पर निवास करते हैं। भगवान विष्णु इस संसार के पालक है और सृष्टि पालक के बिना नहीं चल सकती इसलिए भगवान श्री विष्णु 4 महीने पाताल में निवास करते हैं तब इस सृष्टि का भार भगवान शिव को सौंप कर जाते हैं। कार्तिक माह की यह एकादशी जिसे हम देव उठानी ग्यारस भी कहते हैं इस दिन भगवान राजा बलि के निवास से वापस आते हैं हमारे धर्म में आज ही से सारे शुभ काम शुरू हो जाती है।

श्री हरिहर मिलन उज्जैन में मनाए जाने वाला एक ऐसा त्यौहार है जिसे मुख्यतः इतने हर्ष उल्लास से भारत वर्ष में कहीं और नहीं मनाया जाता। रात को 12 बने जब भगवान श्री महाकालेश्वर की सवारी श्री गोपाल मंदिर के लिए निकलती है पूरे रास्ते जोरों से आतिशबाजी होती है ऐसा लगता है। जैसे साक्षात भगवान आतिशबाजी करते हुए गोपाल मंदिर के लिए निकले हैं। सड़क के दोनों और हजारों की संख्या में  जनता भगवान महाकाल के दर्शन हेतु दोनों हाथ जोड़ कतार में खड़े रहते है।

जब सवारी गोपाल मंदिर पहुंचती है तो भगवान श्री महाकाल से भेंट स्वरूप बिल्व पत्र की माला भगवान श्री कृष्ण के विग्रह को अर्पित की जाती है और भगवान श्री कृष्ण की ओर से भेंट स्वरूप तुलसी की माला भगवान महाकाल को अर्पित किया जाता है। भगवान श्री कृष्ण को बिल्व पत्र नहीं चढ़ाया जाता है और ना ही भगवान श्री शिव को तुलसी परंतु इस विशेष दिन दोनों अपने प्रिय वृक्ष पत्र को एक दूसरे को अर्पण करते हैं और दोनों की एक विशेष आरती होती है। यही हरिहर मिलन है और यही एक ऐसी विशेष पूजा है जिसमें उज्जैन के दो मुख्य देवता जो अलग-अलग मंदिरों में विराजते है दोनों की आरती एक साथ की जाती है। जय श्री महाकाल।। जय श्री कृष्णा।।

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