
अघोरी एक प्रकार के तंत्र साधक होते हैं, जो विशेष रूप से तंत्र और शिववाद के अनुयायी होते हैं। अघोरी साधक अपने जीवन में साधना, तंत्र-मंत्र, और शिव की पूजा के उच्चतम रूपों को अपनाते हैं। वे पारंपरिक धार्मिक सीमाओं से बाहर जाकर आत्मज्ञान और मोक्ष प्राप्ति की राह पर चलते हैं। अघोरी साधना में विघ्नों और पापों से मुक्ति पाने के लिए विशेष प्रकार की तांत्रिक साधनाओं का अभ्यास किया जाता है।
अघोरी का शाब्दिक अर्थ
- “अघोरी” शब्द अघोर से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है जो भयभीत न हो, जो किसी भी प्रकार के बुराई या डर से मुक्त हो।
- यह शब्द अ (नकारात्मकता) और घोर (भयंकर या भूतपूर्व) के मिलाने से बना है, जिसका मतलब है जो भय, कष्ट या किसी भी तरह की घोर परिस्थिति से मुक्त हो।
अघोरी साधकों की विशेषताएँ
- साधना और तंत्र:
अघोरी साधक तंत्र साधना, मंत्र जप, और मंत्रोच्चारण के द्वारा भगवान शिव और अन्य शक्तियों की आराधना करते हैं। वे अपने जीवन में शिव के निराकार रूप (जो किसी भी रूप में प्रकट नहीं होता) का ध्यान करते हैं। - विशिष्ट जीवनशैली:
अघोरी साधक सामान्य जीवन से बहुत अलग होते हैं। उनका जीवन अत्यंत साधारण और कठोर होता है, जिसमें वे सभी प्रकार की भौतिक सुख-सुविधाओं से दूर रहते हैं। वे ध्यान, साधना, तपस्या में लीन रहते हैं और आध्यात्मिक उन्नति के लिए खुद को पूरी तरह समर्पित कर देते हैं। - मृत्यु से संबंधित साधनाएँ:
अघोरी साधक मृत्यु और शव के साथ अपनी साधना करते हैं। वे अक्सर श्मशान घाटों में साधना करते हैं, क्योंकि उनका विश्वास है कि मृत्यु का सामना करने से आत्मज्ञान और अद्वितीय शक्ति प्राप्त होती है। वे मृत शरीरों के साथ कुछ तंत्र क्रियाएँ और अनुष्ठान करते हैं। - दूसरी दुनिया से संबंध:
अघोरी साधक मानते हैं कि वे दूसरी दुनिया के साथ भी संपर्क साध सकते हैं। वे भूत-प्रेत, पिशाच और अधमात्माओं से जुड़ी साधनाओं का अभ्यास करते हैं ताकि उन्हें आध्यात्मिक शक्ति मिल सके और वे संसार के रहस्यों को समझ सकें। - उत्तम आत्मज्ञान की प्राप्ति:
अघोरी साधक अपने शरीर और मन को पूरी तरह नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं, ताकि वे आत्मज्ञान प्राप्त कर सकें। उनका उद्देश्य मोक्ष या निर्वाण प्राप्त करना होता है।
अघोरी साधकों की पूजा विधियाँ
- श्मशान में पूजा:
अघोरी साधक अक्सर श्मशान घाटों पर जाकर वहां के शवों से जुड़े तंत्र-मंत्र का अभ्यास करते हैं। इसका उद्देश्य भूत-प्रेत से मुक्ति प्राप्त करना और आत्मा के परम सत्य को जानना होता है। - शिव की पूजा:
अघोरी साधक भगवान शिव की पूजा करते हैं, क्योंकि वे शिव को सर्वोच्च तत्व और ब्रह्मा का रूप मानते हैं। उनका मानना है कि शिव ही साकार और निराकार दोनों रूपों में विद्यमान हैं। - गांजा और मदिरा का सेवन:
कुछ अघोरी साधक अपनी साधना में गांजा और मदिरा का सेवन भी करते हैं, हालांकि यह केवल तंत्र साधना का एक हिस्सा होता है और इसका उद्देश्य नैतिकता और भौतिक दुनिया से परे जाना होता है।
अघोरी साधक के बारे में सामान्य धारणाएँ
- अघोरी साधकों को आमतौर पर डरावने और रहस्यमय व्यक्तित्व के रूप में देखा जाता है। उनका जीवन और साधना अधिकांश लोगों के लिए समझ से बाहर होती है।
- यह धारणा भी है कि अघोरी अपनी साधना में जो कुछ भी पाते हैं, वह दुनिया से अलग और असामान्य होता है।
- वे न केवल मृत्यु के डर से मुक्त होते हैं, बल्कि वे किसी भी भौतिक सुख-सुविधा या सांसारिक वस्तु की परवाह नहीं करते।
निष्कर्ष
अघोरी साधक भगवान शिव की पूजा करते हुए तंत्र-मंत्र के माध्यम से आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करने के उद्देश्य से जीवन यापन करते हैं। उनका मार्ग एकदम अलग होता है, जो पारंपरिक साधनाओं से परे होता है। अघोरी साधना गहरे ध्यान, तपस्या और बुरी शक्तियों से मुक्ति पाने के लिए की जाती है।
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वास्तव में अघोर एक मार्ग है ईश्वर को पाने का एक पथ है एक रास्ता है।
अघोर का शाब्दिक अर्थ है सबकुछ समान। अर्थात् वे कुछ भी खा लेते है कुछ भी पी लेते है उनके लिए मांस और सब्जी या मानव मल किसी भी वस्तु में कोई फर्क नही हैं।
अर्थात् जिसके लिए संसार की वस्तुओं में भेदभाव नष्ट हो गया वही है अघौरी।
अघोरी जंगलों या समसान में एकांत में रहते है लोगो की पहुंच से दूर कही व्रक्षो पर तो कही पानी में बैठकर महीनों तपस्या करते है और तन पर समशान की राख लगाए फिरते है।
यदि आप उज्जैन आते है तो आपको बड़ी ही सरलता से ओघडी या अघोरी बाबा के दर्शन मिल जायेंगे।