पितरों को बालू (रेत) का पिंडदान मुख्य रूप से गया में किया जाता है। गया, जो बिहार राज्य में स्थित है, हिंदू धर्म के सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। यहाँ पिंडदान करना मोक्ष प्राप्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है।


गया में बालू (रेत) का पिंडदान क्यों किया जाता है?

  1. पौराणिक मान्यता:
    • गया का संबंध भगवान विष्णु और गयासुर नामक राक्षस की कथा से है।
    • गयासुर के शरीर पर पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है।
    • यहां फाल्गु नदी के किनारे पितरों को बालू का पिंडदान करने का विधान है, क्योंकि फाल्गु नदी के तट की बालू को पवित्र और शक्ति प्रदान करने वाली माना जाता है।
  2. फाल्गु नदी की विशेषता:
    • फाल्गु नदी का जल अधिकांश समय सूखा रहता है, और इसमें बहने वाली रेत से ही पिंडदान किया जाता है।
    • मान्यता है कि फाल्गु नदी में बालू का पिंडदान करने से पितरों की आत्मा तुरंत तृप्त हो जाती है।
  3. सीता द्वारा पिंडदान की कथा:
    • एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान श्रीराम गया में पिंडदान करने आए थे, तो माता सीता ने फाल्गु नदी की रेत से पिंडदान किया था।
    • इस घटना के बाद, रेत के पिंडदान की परंपरा शुरू हुई।

गया में पिंडदान की प्रक्रिया

  1. स्थान:
    • मुख्य रूप से फाल्गु नदी के तट पर पिंडदान किया जाता है।
    • यहां विष्णुपद मंदिर, अक्षयवट और गयाश्राद्ध तीर्थ जैसे स्थानों पर भी पिंडदान का महत्व है।
  2. सामग्री:
    • चावल, जौ, तिल, कुशा, और फाल्गु नदी की बालू का उपयोग होता है।
    • बालू को गोल आकार देकर इसे पिंड के रूप में तैयार किया जाता है।
  3. पिंडदान के मंत्र:
    • बालू का पिंडदान करते समय वैदिक मंत्रों का उच्चारण किया जाता है।
    • यह प्रक्रिया एक प्रशिक्षित पंडित द्वारा विधिपूर्वक संपन्न करवाई जाती है।

अन्य स्थानों पर बालू का पिंडदान

हालांकि गया सबसे प्रमुख स्थान है, लेकिन कुछ अन्य तीर्थ स्थलों पर भी बालू का पिंडदान किया जाता है:

  1. प्रयागराज (त्रिवेणी संगम)
    • यहाँ भी बालू का पिंडदान किया जा सकता है, विशेष रूप से कुंभ मेले के समय।
  2. काशी (वाराणसी)
    • काशी में गंगा तट पर रेत से पिंडदान का विधान है।
  3. उज्जैन (शिप्रा नदी)
    • उज्जैन में भी शिप्रा नदी के तट पर बालू का पिंडदान किया जाता है।

बालू का पिंडदान क्यों विशेष है?

  1. सहज उपलब्धता:
    • फाल्गु नदी या अन्य पवित्र नदियों की रेत को पवित्र और पितरों के लिए उपयुक्त माना गया है।
  2. प्रकृति का महत्व:
    • बालू, जल, और कुशा का उपयोग प्रकृति के तत्वों को आत्मसात करने और पितरों को तृप्त करने का प्रतीक है।
  3. धार्मिक मान्यता:
    • बालू का पिंडदान पितरों को तुरंत और गहन तृप्ति प्रदान करता है।

निष्कर्ष

पितरों को बालू (रेत) का पिंडदान मुख्य रूप से गया में किया जाता है, जहां फाल्गु नदी के तट पर इस अनुष्ठान का विशेष महत्व है। यह कर्मकांड न केवल पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष प्रदान करता है, बल्कि परिवार के लिए सुख-शांति और समृद्धि का मार्ग भी प्रशस्त करता है। गया तीर्थ में किया गया यह अनुष्ठान हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र और लाभकारी माना गया है।