आदि शंकराचार्य का जीवन, योगदान और सनातन धर्म में महत्व

भारतवर्ष की महान संत परंपरा में आदि शंकराचार्य का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। उनका जन्म 8वीं शताब्दी में हुआ था। आदि शंकराचार्य को अद्वैत वेदांत का प्रवर्तक माना जाता है। उन्होंने न केवल सनातन धर्म के गूढ़ सिद्धांतों को सरल भाषा में बताया, बल्कि चार प्रमुख मठों की स्थापना कर सम्पूर्ण भारत को एक सूत्र में पिरोने का कार्य भी किया।

जन्म और प्रारंभिक जीवन

आदि शंकराचार्य का जन्म केरल राज्य के कालड़ी गांव में हुआ था। उनके माता-पिता शिवगुरु और आर्या अति धार्मिक थे। बचपन से ही शंकराचार्य अद्भुत प्रतिभा के धनी थे। कहा जाता है कि केवल 8 वर्ष की आयु में उन्होंने संन्यास ले लिया और सत्य की खोज में निकल पड़े।

गुरु गोविंद भगवत्पाद से दीक्षा

आदि शंकराचार्य ने अपने गुरु गोविंद भगवत्पाद से वेदांत का ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने गुरु से शिक्षा लेकर सम्पूर्ण भारत का भ्रमण किया और शास्त्रार्थ के माध्यम से अद्वैत वेदांत का प्रचार किया।

अद्वैत वेदांत का प्रचार

अद्वैत वेदांत का सिद्धांत कहता है कि ‘ब्रह्म ही सत्य है, जगत मिथ्या है’ और जीव तथा ब्रह्म में कोई भेद नहीं है। शंकराचार्य ने इस कठिन दर्शन को सरल भाषा में जनता के समक्ष रखा और सनातन धर्म की एकता को मज़बूती दी।

चार मठों की स्थापना

आदि शंकराचार्य ने चार दिशाओं में चार प्रमुख मठों की स्थापना की:

  1. गोवर्धन मठ (पुरी, उड़ीसा)
  2. शारदा पीठ (द्वारका, गुजरात)
  3. ज्योतिर्मठ (उत्तराखंड)
  4. श्री श्रृंगेरी मठ (कर्नाटक)

ये चारों मठ आज भी वेदांत और सनातन संस्कृति के संरक्षण में लगे हुए हैं।

उनके ग्रंथ और रचनाएँ

आदि शंकराचार्य ने अनेक ग्रंथ लिखे जिनमें प्रमुख हैं:

  • ब्रह्मसूत्र भाष्य
  • भगवद्गीता भाष्य
  • उपनिषद भाष्य
  • विवेकचूडामणि
  • आत्मबोध

इन रचनाओं के माध्यम से उन्होंने अद्वैत वेदांत को जन-जन तक पहुँचाया।

सनातन धर्म में योगदान

आदि शंकराचार्य का सबसे बड़ा योगदान यह रहा कि उन्होंने विभाजित भारत को एक धार्मिक धागे में बाँधा। विभिन्न सम्प्रदायों में व्याप्त मतभेद को समाप्त कर अद्वैत वेदांत के माध्यम से एकता का संदेश दिया। उनके द्वारा स्थापित शंकराचार्य परंपरा आज भी सनातन धर्म की रक्षा का कार्य कर रही है।

समाधि स्थल

आदि शंकराचार्य की समाधि केदारनाथ धाम के समीप मानी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि केवल 32 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने शरीर का परित्याग कर दिया। इतने अल्प जीवन में उन्होंने जो कार्य किया, वह असाधारण है।


FAQs:

1. आदि शंकराचार्य का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
आदि शंकराचार्य का जन्म केरल के कालड़ी गांव में 8वीं शताब्दी में हुआ था।

2. आदि शंकराचार्य का मुख्य दर्शन क्या था?
उनका मुख्य दर्शन अद्वैत वेदांत था, जिसमें ब्रह्म और जीव की एकता का संदेश है।

3. आदि शंकराचार्य ने कितने मठों की स्थापना की थी?
आदि शंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना की — पुरी, द्वारका, ज्योतिर्मठ और श्रृंगेरी।

4. आदि शंकराचार्य के प्रमुख ग्रंथ कौन से हैं?
उनके प्रमुख ग्रंथ हैं ब्रह्मसूत्र भाष्य, भगवद्गीता भाष्य, उपनिषद भाष्य, विवेकचूडामणि और आत्मबोध।

5. आदि शंकराचार्य की समाधि कहाँ स्थित है?
उनकी समाधि केदारनाथ धाम के समीप मानी जाती है।


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